शुक्रवार, 26 अक्तूबर 2012

पीला गुलाब -6 & 7.


6.

जहाँ दादा की पोस्टिंग नई जगह में हुई ,शिब्बू उत्साह से भर जाते हैं .
उनके के घर जाकर रहना बड़ा अच्छा लगता है उन्हें .शादी के बाद नई दुलहिन को ले कर वहीं पहुँच गये .
देवर-भाभी में पटरी भी खूब  बैठती है .
दोनो बतियाते रहते है ,रुचि सुनती रहती है बीच में बोल दी तो बोल दी ,नहीं तो चुप .सबको स्वाभाविक लगता है .अभी नई-नई है थोड़ा तो समय लगेगा .
वैसे भी इन बातों में दखल देने से रही -बोले तो क्या बोले !
कर्नल साहब घर में बहुत कम टिकते हैं .कई कार्यक्रम रहते हैं उनके बहुत व्यस्त रहते हैं .
बड़ी तारीफ़ है उनकी ,लोक-प्रिय हैं .जन-कल्याण और सैनिकों के परिवारों के हित के लिये कुछ करने में कभी पीछे नहीं रहते . धाक है उनकी .
 रुचि ने कमरे से सुना जेठ जी कह रहे थे 'आज क्लब में चेरिटी शो के टिकट लिये बड़ा अच्छा संगीत का प्रोग्राम है शिब्बू ,तुम लोग  देख आओ .'
'क्यों दादा टिकट लिये हैं, जाओगे नहीं ?'
'मुझे तो आज कुछ खास का निपटाने हैं और तुम्हारी भाभी का इस सब मैं कोई इन्टरेस्ट नहीं ,ये रखे हैं टिकट .'
भाभी बोलीं थीं 'और क्या! मार दो घंटे बैठो और कुछ मजा भी न आए .अरे ,फड़कते हुए सिनेमा के गाने होते तो बात और थी .हमारे यहाँ तो लोग आर्टिस्ट के साथ सुर मिला कर स्टेज पर नाचने भी लगते थे .'
' बहुत देखे हैं ऐसे पहुँचे हुये प्रोग्राम जब पढ़ते थे .किसका मन लगता है .सब गप्पों में मगन रहते हैं .' देवर ने सुर में सुर मिलाया .
रुचि कमरे से बाहर निकल आई .
जेठजी आश्चर्य से शिब्बू को देख रहे थे .
'कैसी बात करता है मुन्ना.कहाँ स्कूलों के चलताऊ प्रोग्राम और कहाँ ये इन्टरनेशनल फ़ेम के आर्टिस्ट?'
रुचि ने कार्ड पर लिखे संगीतज्ञों के नाम देखे ',इन के प्रोग्राम के लिए तो हमारे यहाँ सिर फुटौवल होती थी .'
'ऊँह वही आलाप जैसे कोई सुर भर भर कर रोये जाये, ये गाना है क्या !
 हमें तो बोरियत होती है . हमें नहीं जाना .तुम चाहो दादा के संग चली जाओ .'
दादा पत्नी की ओर देख कर बोले,' तुम तो जाओगी नहीं . हमारी आज जरूरी मीटिंग है .हमें जाना होता तो तुम्हें क्यों देते ?
रुचि तटस्थ है - जाओ तो ठीक न जाओ तो ठीक.
क्यों बीच में दखल देती फिरे !
*
शिब्बू मगन हो रहते हैं -क्या ठाठ हैं .एकदम साहबी ढंग !
'कुछ भी कहो भाभी,आर्मीवालों का रंग ही अलग है . रहन-सहन पहनना-ओढ़ना सब निराला .सबसे अलग चमकते हैं .'
'सो तो है ..देखने वाले पर रौब पड़ता है .पर हमें सुरू-सुरू में बड़ा अजीब लगता था .बड़ी मुस्किल से इत्ता कर पाये हैं .उहाँ तो सब साथ में बैठ कर सराब पीती हैं ..'
अरे भाभी, शराब मत कहो .ड्रिंक कहो, ड्रिंक !'
'हाँ ,वाइन पीती हैं ऊ कोई शराब थोरे है .'
' अउर का ?'
'तुमने कभी नहीं पी .'
'अरे पी ,.सबके साथ में पी थी .'
'अच्छा नहीं लगी ?'
'मार कडुई ,अजीब सा सवाद. पर पी ली सबके साथ .'
फिर रुक कर बोलीं ,'अब बहू को ही देखो ,ड्रिंक करते देखा तो बरात लौटा दी और हम इनके यहां की पार्टी में वाइन पीने लगे .हमने अपने को ढाल लिया .'
शिब्बू गौरवान्वित अनुभव करते हैं , 'हाँ देखो न ,दद्दा के मुकाबले हमें पसंद किया.'
दोस्तों में मौका मिलते ही बताने से चूकते नहीं .
'भाभी ,भइया तो तुमसे स्लिम हैं .'
'आर्मी में हैं न .हमेला चाक-चौबंद रहने की आदत .हम तो भई, आराम से रहने में विश्वास करते हैं .'
'हाँ और क्या ?क्यों बेकार काया को कष्ट दिया जाय .' शिब्बू ने कहा और हो-हो कर हँस दिये - बड़ी मज़ेदार बात कही है न !
भाभी ने समर्थन किया .
'...और डांस,भाभी '?
देवर पूछे ही जा रहा है .क्या सभी कुछ पूछ कर दम लेगा !
अरे लाला ,.सब पूछ के ही रहोगे ?पहले सुरू-सुरू में तो इनकी बाहों में डांस भी अजीब लगा -फिर तो धीरे-धीरे आदत पड़ गई .'
'अब तो मज़ा आता होगा भाभी ?
'बेसरम !अपनी सोचो लाला "!
  ' कोई ऐसा-वैसा शौक ही नहीं इन्हें , ऊँचे आदर्शोंवाली ,गंभीर ये  उस टाइप की नहीं हैं . और  दादा की लाइफ़ ही अलग है !'
'हाँ सो तो हैं .'भाभी पूरी तरह सहमत.
*
7.
'बिट्टू आ रहा है .कोई टेस्ट देना है उसे .'
दादा के नाम आया ,चाचा का पोस्टकार्ड शिब्बू के हाथ में है .
'अच्छा वोह, बिट्टू ! हमारी शादी में आया था .हमारी बहन से बातें कर रहा था .'
'तुम्हारी कौन सी बहन है भाभी ?'
'वही विनीता .हमारे मामा की लड़की .'
'हाँ ,समझ गये .दादा के जूते उसी ने छिपाये थे ,बड़ी तेज़ लड़की है भाई .हमे उससे और बात करनी थी ,पर भाग गई .कहे - हम नहीं रुकते यहाँ पे अम्माँ बकेंगी...  '
बकेंगी !सब हँसने लगे .
भाभी ने स्पष्ट किया ,' हाँ  ,वो सबसे बोलने पहुँच जाती है .मामी गुस्सा होती हैं .'

' तुमसे तकरार हो गई थी न ! मामी कह रही थी इसी से ब्याह देंगे विनीता को .'
' फिर काहे नाहीं की ?'
'उसे क्लर्क नहीं अफ़ीसर चाहिये था.बैंक में अच्छे ओहदे पर है उसका दूल्हा.'
'जाने दो हमें तो उससे अच्छी मिल गई . कदर करनेवाले भी मिल जाते हैं, आदमी में अपने गुन होने चाहिये . क्लर्क हैं ,तो क्या....''
 इतवार को आ पहुँचा  बिट्टू , शिब्बू की शादी में नहीं आ पाया था .कहीं बाहर पढ़ रहा था . अब तो खूब लंबा  हो गया है .
 दादा अख़बार पढ़ रहे थे ,चाय चल रही थी..
नई भाभी को देखा तो चौंक गया .
'अरे ,शिब्बू दा की दुल्हन ये हैं .'
'हाँ, क्यों ?'
'हम इनकी पहली बरात में गये थे .मुन्ना दादा ,तुम्हें याद है न ? हाँ.यही तो थीं  ?' .
शिब्बू तौलिया बाँधे उधर ही चले आये थे ,बोले
'हाँ ,हाँ यही थीं .अब देखो आ गईं इसी घर में .तुमने क्या देखा था इन्हें ?'
उस दिन दादा ने  कहलाया था - जा के कह दो एक बार लड़की  हमसे आकर बात कर लें,. .वह मना कर देगी तो  हम चुपचाप लौट जायेंगे .
तब हम भी चच्चा के  साथ चले गये थे. इनके घर के लोग मार गुस्साये जा रहे थे .
जब चच्चा ने कहा,  वो लोग हैरान !एक दूसरे का मुँह देखें,और  ये चट्टसानी उठ के खड़ी हो गईं .चल भी दीं थीं हमारे संग आने के लिये .पर इनके मामा ने और लोगों ने नहीं आने दिया.एकदमै मना कर दिया कि वो शराब पिये हैं .तुम्हें अब सामना करने  की कोई जरूरत नहीं .हम लोग हैं न .'
बिट्टू ने  पूरा दृष्य सामने ला दिया.
सब ताज्जुब से  सुने जा रहे हैं .
'ये भाभी होतीं न  हमारी, सो इच्छा हो रही थी ,सबको हटा के हाथ पकड़ के आपके सामने ला के खड़ा कर दें .दादा ,सच्ची में हमें लग रहा था ये ...' कहते-कहते वह एकदम चुप हो गया .
अभिमन्यु रुचि की ओर देख रहे हैं सिर झुकाये बैठी है वह .
'लो ,हमें  पता ही नहीं. 'बिट्टू ,तुमने आ के हमें नहीं बताया ?'
 'वहाँ तो कोहराम मचा था .आप को बताने से कोई फ़ायदा नहीं था. '
तो अब बताने क्या फ़ायदा !
 क्या कहें अभिमन्यु ,चुप रह गये .
*
चार साल पहले अपनी नई-नई नौकरी छोड़ने को नोटिस  दिया था रुचि ने .पर लौट कर तुरंत वापस ले लिया था.
अब शादी हो जाने पर  सब को लगा रिज़ाइन कर देगी . पर इस बार  उसी ने  साफ़ कर दिया 'खाली नहीं बैठा जायेगा मुझसे ..
और वह लड़कियों को पढ़ाती रही .
नौकरी छोड़ देती तो करती क्या .शिब्बू तो कहीं टिक कर काम करते नहीं  .दो बार लगी-लगाई छोड़ चुके हैं .स्कूल की क्लर्की रास नहीं आई थी आये दिन झगड़े .सो छोड़कर बैठ गये. वो तो ये कहो किस्मत अच्छी जो शादी होते ही म्युनिसिपेलटी के दफ़्तर में क्लर्क लग गये.
 ऊपर से ,बीवी कमाऊ मिली ,फिर यहीं तबादला करा लिया . अब तो मौज से कट जायेगी .
आज हाफ़ सी.एल. लेकर घर आ गई है रुचि ,बिलकुल  अकेली रहने का मन है . कुछ भी नहीं करेगी ,बस खूब देर लेटी रहेगी यों ही चुपचाप .जब मन होगा उठेगी चाय बना कर खुले में बैठ कर पिेयेगी .कोई मन की किताब पढ़ेगी ,और जो मन में आएगा सोचती रहेती ,
आकर कपड़े बदले ,दो-चार शक्करपारे निकाल कर खाने लगी कि घंटी बजी .
' ये इस समय कौन आ गया ?'
दरवाज़ा खोला ,
'अरे ,तुम कैसे घर चले आए ?'
'तुम आ गईं थीं न .'
'तुम्हें कैसे पता?'
'फ़ोन किया था तुम्हारे यहाँ ,पता लगा आधी सी.एल .लेकर चली गई हो .तो हमने भी सोचा घर चलें आज मौज रहेगी .क्या सिर में दर्द है ?'
'नहीं.'
'फिर ठीक है ,पहले एक-एक कप चाय हो जाय .तुम क्या करने जा रहीं थीं .'
'चाय पीने.'
'बस ,तो फिर गरमा-गरम पकौड़ों के साथ .'
'आज शाम को कुछ ज्यादा मत करना भरवां करेले के साथ पराँठे काफ़ी हैं .'
बनाते खाते रात के ग्यारह बज गए .
दिन बीतते जा रहे हैं .
*
(क्रमशः)

7 टिप्‍पणियां:

  1. रुचिपूर्ण ...आगे की कथा का इन्तजार रहेगा

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  2. रोचक! छोटी-छोटी बातें मन को रुचती रहीं।

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  3. अच्छा परिवेश बुनती आगे बढ़ रही है कथा .चरित्र भी अपनी झलक सर उठाके दिखाने लगें हैं .इनमें जो जितना मौन है वह उतना ही मुखर है .

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  4. बढ़िया परिवेश खड़ा करती आगे बढती है यह कथा अब तो पात्रों के चरित्र भी सर उठाने लगें हैं .जो जितना मौन है उतना ही मुखर है इस कथा में .

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