मंगलवार, 29 मार्च 2016

सुना आपने ?

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सुना आपने -  पानी के पुराने बिल माफ़ और बिजली के रेट आधे !
समझदार थे वे, जिनने बिल नहीं चुकाया . नियमों को मान कर चलेवाले  मूर्ख निकले?
 मज़े से उपभोग करो  ,मूल्य चुकाने नाम कन्नी काट जाओ .अब  बिजली का दाम भी कम हो  गया डट कर फूँको.देखो न ,बिजली-पानी के लिये शोर मचा रहे हैं लोग और हम अपने लोगों को खुली छूटें दे रहे हैं.
कुछ तुम्हारी जेब से तो जाता  नहीं , काहे चिल्लाय रहे हो , आ जाओ हमारे साथ तुम भी .
लोक  तत्काल फ़ायदा देखता है - ये उनमें लोकप्रियता पाने का हमारा फ़ार्मुला है .
कौन कहता है इसे  मुफ़्तखोरी ? ये तोहफ़ा है , हमारी जनता के लिये  .हमें चुना है  प्रसाद तो पायेंगे ही.
समाज में सुव्यवस्था और सदाचरण लाना हमारा काम कैसे ? हमें तो अपने आगे का इन्तज़ाम करना  है !
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हमारा मुँह का तक रहे हो !
देखो भई ,तुम्हें समझाये  दे  रहे हैं -लिखे-पढ़े हो समझ जाओगे  . प्रान्तों की संसाधन-संपन्नता भिन्न है  भौगोलिक कारण हैं. सबके भंडार अलग-अलग हैं . हमारा कोई दोष नहीं उसमें.भेद सब  ऊपरवाले का किया-धरा है . रही बात एक  देश ,एक राष्ट्रीयता  की - उसे  बाँट दिया हमने , जितना हिस्सा जिसके हाथ लगे ! सबकी अपनी सुविधा-दुविधा, हमने क्या सबका ठेका लिया है ?
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4 टिप्‍पणियां:

  1. जोरदार कटाक्ष..सस्ती लोकप्रियता पाने के लिए ऐसे चुग्गे चुगाने वाले लम्बे समय तक नहीं टिक सकते..टुकड़ों में बाँट कर जब हम देश को देखेंगे तो लोगों के मध्य दूरी बढ़ती ही जाएगी..

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  2. दुखद है... पर समझना भी कौन चाहता है.

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  3. मम्मी! कोई इस तरह के छोटे-छोटे लाभ में उलझकर रह जाता है और कोई मीठे-मीठे वादों की गोलियों के स्वाद में. आम जनता के मासिक बजट में दो पैसे बचते हैं तो उसे लगता है मानो कुबेर का ख़ज़ाना मिल गया या दाल में पानी की मात्रा थोड़ी कम हो गई.
    मम्मी! गुजरात में चार साल पूरे होने को आ गये. बड़ा ही सम्पन्न प्रदेश है, लेकिन यहाँ कोई भी व्यक्ति अपने मकान का म्युनिसिपल टैक्स नहीं भरता. एक एक व्यक्ति के ऊपर टैक्स का बकाया लाखों में है और बरसों से है. लेकिन जानती हैं कि वे टैक्स क्यों नहीं जमा करते और इत्ना भारी बकाया होने के बाद भी कैसे चैन की नींद सोते हैं?? उन्हें पता है कि 5-7 सालों में सरकार सारे टैक्स माफ़ कर देगी और लाखों के टैक्स के बदले कुछ हज़ारों में वे छूट जाएँगे. और ये नगरपालिका वाले, कल मेरा ऑफिस सील करने आये थे. दस लोगों ने घेर लिया मुझे और कहा कि ऑफिस ख़ाली करो सील करना है. जब मैंने सारे टैक्स की रसीदें दिखाईं तो यह कहकर चले गये कि एक अरजी लिखकर इन रसीदों की कॉपी जमा करवाएँ.
    मेरा तो सदा से यही मानना है कि जैसे चुहिया को चूहा ही मिला था, उसी तरह जनता जो डिज़र्व करती है उन्हें वही मिलता है!

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  4. हाँ सलिल,मेरी समझ में नहीं आता कि अपने ही नियमों को सरकार स्वयं क्यों भंग करती है?जो दंडनीय है उसे पुरस्कृत कर मुफ़्तखोरी के लिये प्रोत्साहित करती है .कर्तव्यपरायण और ईमानदार नागरिक ही किसी राष्ट्र की असली संपदा होते हैं और नियम पालन करवाना शासन का काम है .जिस सुविधा का उपभोग किया उसका मोल चुकाना निष्ठवान नागरिक का कर्तव्य है पर उससे विरत कर लोगों को किस दिशा में ले जाने का काम कर रहे हैं ये लोग?

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